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Wednesday, 19 June 2019

चमकी बुखार से कैसे बचाएं अपने मासूमों की जान जानें लक्षण और बचाव का तरीका

चमकी बुखार से कैसे  बचाएं अपने मासूमों की जान जानें लक्षण और बचाव का तरीका

               


बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार की चपेट में आने से कई बच्चे अपनी जान गवां चुके हैं. इस बुखार की वजह से मासूम बच्चों की मौत का आंकड़ा 150 के पार पंहुच चुका है. चमकी बुखार एक तरह का मस्तिष्क बुखार होता है.





बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी नाम के बुखार की चपेट में आने से कई बच्चे अपनी जान गवां चुके हैं.
इस बुखार की वजह से मासूम बच्चों की मौत का आंकड़ा 150 के पार पंहुच चुका है.
चमकी बुखार' दरअसल एक तरह का मस्तिष्क बुखार होता है. इम्युनिटी कमजोर होने की वजह से करीब 1 से 8 साल के बीच की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आते है.


चमकी बुखार क्या है-



एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम को बोलचाल की भाषा में लोग चमकी बुखार कहते हैं. इस संक्रमण से ग्रस्त रोगी का शरीर अचानक सख्त हो जाता है. और मस्तिष्क व शरीर में ऐठंन शुरू हो जाती है. आम भाषा में इसी ऐठन को चमकी कहा जाता है. इंसेफ्लाइटिस मस्तिष्क से जुड़ी एक गंभीर समस्या है. मस्तिष्क में लाखों कोशिकाएं और तंत्रिकाएं होती हैं  जिसकी वजह से शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से काम करते हैं.लेकिन जब इन कोशिकाओं में सूजन आ जाती है तो उस स्थिति को एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम कहा जाता है.


ये एक संक्रामक बीमारी है. इस बीमारी के वायरस शरीर में पहुंचते ही खून में शामिल होकर अपना प्रजनन शुरू कर देते हैं. शरीर में इस वायरस की संख्या बढ़ने पर ये खून के साथ मिलकर व्यक्ति के मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं. मस्तिष्क में पहुंचने पर ये वायरस कोशिकाओं में सूजन पैदा कर देते हैं. जिसकी वजह से शरीर का 'सेंट्रल नर्वस सिस्टम' खराब हो जाता है और हालात बिगड़ने लगती हैं.


चमकी बुखार क्यों होता हैं जानिए लक्षण-


चमकी बुखार में बच्चे को लगातार तेज बुखार लगता है. बदन में ऐंठन होती है. बच्चे दांत पर दांत चढ़ाए रहते हैं. कमजोरी की वजह से बच्चा बार-2 बेहोश होता है. यहां तक कि शरीर भी सुन्न हो जाता है और उसे बिजली जैसे झटके लगते रहते हैं.



मस्तिष्क की रोग में जरूरी जांच-

एंसिफलाइटिस के दौरान डॉक्टर एमआरआई या सीटी स्कैन करवा सकते हैं. इसके अलावा इस बुखार की पहचान खून या पेशाब की जांच से भी हो सकती है. प्राइमरी एंसिफलाइटिस के मामलों में रीढ़ की हड्डी से द्रव्य का सेंपल लेकर जांच की जाती है. इसके अलावा दिमाग की मस्तिष्क की बायोप्सी भी की जा सकती है.


बुखार हो जाने पर क्या करें-

*बच्चे को तेज बुखार आने पर उसके शरीर को गीले कपड़े से पोछते रहें ऐसा करने से बुखार सिर पर नहीं चढ़ेगा.

*पेरासिटामोल की गोली या सिरप डॉक्टर की सलाह पर ही रोगी को दें.

*बच्चे को साफ बर्तन में एक लीटर पानी डालकर ORS का घोल बनाकर दें. याद रखें इस घोल का इस्तेमाल 24 घंटे बाद न करें.

*बुखार आने पर रोगी बच्चे को दाएं या बाएं तरफ लिटाकर अस्पताल ले जाएं.

*बच्चे को बेहोशी की हालत में छायादार स्तान पर लिटाकर रखें.

*बुखार आने पर बच्चे के शरीर से कपड़े उतारकर उसे हल्के कपड़े पहनाएं. उसकी गर्दन सीधी रखें.


बुखार हो जाने पर क्या न करें-



*बच्चे को खाली पेट लीची न खिलाएं.

*अधपकी या कच्ची लीची का सेवन करने से बचें.

*बच्चे को कंबल या गर्म कपड़े न पहनाएं.

*बेहोशी की हालत में बच्चे के मुंह में कुछ न डालें.

*मरीज के बिस्तर पर न बैठें और न ही उसे बेवजह तंग करें.

*लीची पानी का भी सेवन ना करे.

*मरीज के पास बैठकर शोर न मचाएं.



सावधानी-


गर्मी के मौसम में फल और खाना जल्दी खराब होता है. इस बात का खास ख्याल रखें कि बच्चे किसी भी हाल में जूठे, कच्चे और सड़े हुए फल ना खाए. बच्चों को गंदगी से बिल्कुल दूर रखें. खाने से पहले और खाने के बाद हाथ साबुन से जरूर धुलवाएं. साफ पानी पिएं, बच्चों के नाखून नहीं बढ़ने दें. समय समय पे नाखून काटते रहे. बच्चों को गर्मियों के मौसम में धूप में खेलने से भी मना करें.  रात में कुछ खाने के बाद ही बच्चे को सोने के लिए भेजें बिना खाये नही जाने दे. डॉक्टरों की मानें तो इस बुखार की मुख्य वजह सिर्फ लीची ही नहीं बल्कि जूठे, कच्चे और सड़े गर्मी और उमस भी है.

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